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बेलगावी जिले में एक महिला को निवस्त्र कर मारने के मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट ने समाज को आइना दिखाते हुए कहा कि ऐसे मामलों में समाज की सामूहिक जिम्मेदारी तय होनी चाहिए और इसके लिए कानून बनना चाहिए। बेलगावी मामले में गांव का केवल एक आदमी पीडित महिला की मदद के लिए आगे आया। जबकि पूरा गांव चुपचाप अपनी आंखों के सामने अपराध होते देखता रहा। हाई कोर्ट ने कहा नारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ नहीं, बल्कि ‘बेटा पढ़ाओ’ होना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस प्रसन्ना बी. बराले ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि बेटी पढ़ाओ का नारा बालिका को सुरक्षित रखने के लिए दिया गया। लेकिन आप जब तक बेटे को नहीं बताएंगे, आप यह लक्ष्य हासिल नहीं कर सकते। एक लड़की स्वाभाविक रूप से दूसरी महिला का आदर करेगी। लेकिन लड़कों को यह सिखाने की जरूरत है कि वह महिला का आदर करें और उसकी रक्षा करें। बेलगावी के हुक्केरी तालुक में एक 42 वर्षीय महिला को बिजली के खंभे में बांधकर उसे निवस्त्र कर पीटने के मामले पर हाई कोर्ट ने 12 दिसंबर को स्वतः संज्ञान लिया था। इस महिला का बेटा उसी गांव की एसटी समुदाय की लड़की के साथ भाग गया था। हाई कोर्ट ने सामूहिक जिम्मेदारी तय करने की भी आवश्यकता बताई है। साथ ही इसके लिए नए कानून बनाने का सुझाव दिया। मौखिक टिप्पणी में कहा कि लार्ड विलियम बेंटिक ने अपराधियों को पोषित करने वाले गांवों पर सामूहिक जुर्माना लगाया था। सिर्फ अपराधियों का ही दोष नही है उनका भी है जो तमाशाबिन बने रहे ऐसे लोगो का चुपचाप तमाशा देखना हमलवारों को हीरो बना देता है, कोर्ट ने कहा गाँव की आबादी 8000 है ,13 हमलवारों के अलावा वहाँ 50-60 लोग थे ,केवल एक व्यक्ति महिला को बचाने आगे आया।

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