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स्कूल चलो अभियान की मंगलवार को नई मंगल-कहानी लिखी गई। शिक्षा के उजियारे से दूर मुसहर परिवारों के 82 बच्चे स्कूल बुलाए गए। लंबे-उलझे बाल और माटी-कीचड़ में खेले बच्चों को स्कूल में ही नहलाया गया। यहीं नाई बुलाकर बाल कटवाए गए। हाथों-हाथ ड्रेस और किताबें दी गई। स्कूली दुनिया के रंगमंच पर रोमांचित बच्चे बोले, अब रोजाना स्कूल आएंगे।शैक्षिक उजियारे की यह स्वर्णिम पटकथा जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर जौनपुर सीमा से सटे प्रतापपुर ब्लॉक के गांव सोरों में गढ़ी गई। जुलाई की शुरुआत में प्रतापपुर ब्लॉक के खंड शिक्षाधिकारी (बीईओ) बनाए गए विश्वनाथ प्रजापति को पत्ता लगा कि सोरों के उच्च प्राथमिक विद्यालय में पड़ोसी गांवों के 243 बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन मुसहर समाज का कोई बच्चा स्कूल नहीं आता।मुसहर जाति के छह से 12 वर्ष उम्र वाले 82 बच्चे हैं। इनके माता-पिता मजदूर हैं। बीईओ ने ग्रामीणों को समझाया, मगर वह नहीं माने। बार-बार कोशिश के बाद बताया कि बच्चे स्कूल भेजेंगे तो दूसरी सरकारी सुविधाएं भी मिलेंगी। तब वह राजी हुए। मंगलवार को बीएसए प्रवीण कुमार तिवारी की मौजूदगी में माता-पिता के साथ बच्चे स्कूल बुलाए गए।बच्चों की हालत देखकर नाई बुलाया गया। बाल कटवाए गए, नहलाया गया। किताबें, बैग, ड्रेस भी दी गई। हाथों-हाथ 49 बच्चों के आधार कार्ड भी बनाए गए। शेष के कार्ड बुधवार को बनेंगे। बीएसए ने कहा कि इन बच्चों की पढ़ाई न छूटे, यह हम सबकी जिम्मेदारी है।

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