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इलाहाबाद हाइकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि किसी स्कूल से जारी मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट को जन्मतिथि निर्धारित करने के लिए पर्याप्त कानूनी प्रमाण माना जाता है। जहां ऐसा सर्टिफिकेट गलत साबित नहीं हुआ, वहां डीएनए टेस्ट जरूरी नहीं है। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने अपर्णा अजिंक्य फिरोदिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हवाले से दिया है। कोर्ट ने कहा कि जैसा कि अपर्णा अजिंक्य फिरोदिया में कहा गया है कि डीएनए टेस्ट का आदेश नियमित तरीके से नहीं किया जा सकता है। इसे केवल असाधारण परिस्थितियों में किया जाता है, जब संबंधित व्यक्ति के माता-पिता का निर्धारण करने के लिए कोई अन्य कानूनी आधार नहीं है। इस मामले में ऐसा दस्तावेज है, जिसे जन्मतिथि के निर्धारण के लिए पर्याप्त कानूनी प्रमाण माना जाता है, यानी मैट्रिकुलेशन सर्टिफिकेट इसलिए डीएनए टेस्ट के लिए आदेश करने की कोई स्थिति नहीं है।

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