शिक्षा व्यवस्था में सुधार और नगरीय क्षेत्र में पढ़ाई पर अधिक फोकस करने के लिए शहरी स्कूलों को नगर संवर्ग में लाने का फैसला उलटा साबित हुआ। करीब 43 साल पहले 1981 में नियमावली तो बनाई गई मगर, कभी भी नगर क्षेत्र में शिक्षकों की भर्ती नहीं की जा सकी। इसी कारण यहां छात्र संख्या कम हुई और कई स्कूल बंद हो गए।बेसिक शिक्षा परिषद के प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालय शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में हैं। शासन ने 1981 में बेसिक शिक्षा (अध्यापक) सेवा नियमावली में नगरीय व ग्रामीण संवर्ग को अलग कर दिया। इसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों के रिक्त पद भरने के लिए भर्तियां हुईं, लेकिन नगरीय क्षेत्रों की ओर ध्यान नहीं दिया गया। बाद में सरकार ने शहरी क्षेत्र के स्कूलों में रिक्त पद भरने के लिए बीच का रास्ता निकाला। तय हुआ कि ग्रामीण क्षेत्र में पांच साल के बाद शिक्षकों की शहरी क्षेत्र में तैनाती की जा सकेगी। लेकिन, ग्रामीण से शहरी क्षेत्र में तैनाती पर उनकी वरिष्ठता वहां तैनात शिक्षकों से नीचे हो जाएगी। इस वजह से शिक्षकों ने नगर क्षेत्र में जाने में रुचि नहीं दिखाई। अब कई स्कूल शिक्षामित्रों या एकल शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। खास बात ये कि यह स्थिति तब पैदा हो रही है, जबकि काफी शिक्षक शहरी क्षेत्र में तैनाती के लिए हर स्तर पर जोर| लगाते, सिफारिश करवाते हैं। 85 हजार पद खाली, फिर भी शिक्षक – छात्र शहरी क्षेत्र के स्कूल बंद हो रहे हैं। अनुपात बेहतर सरकार के आंकडों के अनुसार परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में स्वीकृत 4,17,886 पद के सापेक्ष प्रधानाध्यापक व सहायक अध्यापक के 85,152 पद खाली हैं। इस तरह शिक्षक-छात्र अनुपात 31-1 का है। वहीं प्राथमिक में 1,47,766 शिक्षामित्रों को मिलाकर शिक्षक-छात्र अनुपात 21-1 का है। मानक के अनुसार शिक्षक-छात्र अनुपात पूरा है। फिलहाल नई भर्ती प्रस्तावित नहीं है