परिषदीय स्कूलों के शिक्षकों के लिए स्मार्टफोन जी का जंजाल बन गया है। पढ़ाई-लिखाई और प्रशिक्षण से लेकर तरह-तरह की सूचनाएं देने का इस कदर दबाव है कि एक शिक्षक के स्मार्टफोन पर औसतन तीन दर्जन तक मोबाइल एप मिल जाएंगे। इन पर उपस्थिति दर्ज करने से लेकर, मिड-डे-मील वितरण, ऑनलाइन रिपोर्टिंग, छात्र मूल्यांकन और दैनिक गतिविधियों की निगरानी तक की सूचना देना अनिवार्य है।स्कूल टाइम के अलावा शिक्षक घर पर भी घंटों ऑनलाइन सूचनाएं देने में ही बिता देते हैं। शिक्षकों का कहना है कि इतना अधिक डिजिटल काम का दबाव में उनकी मुख्य जिम्मेदारी पढ़ाने से ध्यान भटका रहा है।हर काम के लिए अलग-अलग एप से सूचनाएं भरने में काफी समय लग जाता है और तकनीकी समस्याओं के कारण भी दिक्कत होती है क्योंकि वह तकनीकी रूप से इतने दक्ष नहीं हैं।एप के अलावा व्हाट्सएप पर बेसिक शिक्षा विभाग के कई ग्रुप भी बने हैं जिन पर शिक्षकों से जवाब तलब और सूचनाओं का आदान-प्रदान होता है। यही नहीं यू-डाइस पोर्टल पर जो बच्चे आठवीं पास कर चुके हैं उनको ड्रॉपबॉक्स में डालकर यह भी पता करना शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि उसने कक्षा नौ में किस स्कूल में प्रवेश लिया है। यह पता चलने पर उस स्कूल से संपर्क कर उनसे बच्चों को इंपोर्ट करने के लिए कहना पड़ता है।मोबाइल पर सूचनाएं देने बैठें तो अभिभावकों कहते हैं कि शिक्षक कक्षा में पढ़ाने के बजाय मोबाइल पर समय बिताते हैं। अगर शिक्षक सूचनाएं नहीं देते, तो विभागीय अधिकारी कार्रवाई की धमकी देने लगते हैं। प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष देवेन्द्र कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि हमें खुद नहीं पता कि कितने एप चल रहे हैं। पढ़ाने के लिए हमें समय चाहिए लेकिन एप पर सूचनाएं देने में ही काफी समय निकल जाता है। सरकार को चाहिए हमसे केवल पढ़ाई कराएं और ऑनलाइन काम करवाने के लिए कंप्यूटर ऑपरेटर की नियुक्ति कर दी जाए।