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सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा एक से सातवीं तक के 5,74,132 – बच्चों का डाटा यू-डायस पोर्टल – के ड्रापबाक्स में फंसा हुआ है। – पोर्टल पर छात्रों का पूरा रिकार्ड – नाम, जन्मतिथि, आधार नंबर और कक्षा की जानकारी दर्ज की जाती है। किसी बच्चे का रिकार्ड तब तक ड्रापबाक्स में रहता है, जब तक उसका डाटा अगले स्कूल में इंपोर्ट (स्थानांतरण) नहीं हो जाता। ऐसे बच्चे जब नौवीं कक्षा में जाएंगे तो बोर्ड परीक्षा के रजिस्ट्रेशन के समय – परमानेंट एजुकेशन नंबर नहीं होने – से परेशानी हो सकती है। फिलहाल बड़ी संख्या में बच्चों का डाटा इंपोर्ट नहीं हो पाया है। कई बच्चे पांचवीं या आठवीं पास करने के बाद अपने परिवार के साथ राज्य = से बाहर चले गए हैं, जिससे उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा। कुछ बच्चों ने गैर-मान्यता प्राप्त स्कूलों में दाखिला ले लिया है, जिनका डाटा सिस्टम में ट्रांसफर नहीं हो सकता।परिषदीय स्कूल के प्रधानाध्यापकों – का कहना है कि ड्रापबाक्स खाली कराने का दबाव बेसिक अधिकारियों की ओर से डाला जा रहा है, जबकि कई मामलों में छात्रों की जन्मतिथि, आधार कार्ड और ट्रांसफर सर्टिफिकेट (टीसी) में अंतर है। कुछ के नाम आधार और यू-डायस पोर्टल पर अलग अलग दर्ज हैं, जिससे सिस्टम डाटा स्वीकार नहीं कर रहा। जिन बच्चों का जन्म प्रमाणपत्र या आधार कार्ड नहीं है, उन्हें कुछ स्कूलों ने अस्थायी रूप से ‘9999’ डालकर पंजीकृत किया है।ग्रामीण इलाकों में स्थिति और गंभीर है। कुछ स्कूल आरटीई (शिक्षा के अधिकार) 2009 के नियमों का उल्लंघन करते हुए कक्षा पांच या आठ पास बच्चों को फिर से निचली कक्षा में दाखिला दे रहे हैं, जिससे भी डाटा ट्रांसफर नहीं हो पा रहा। बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ड्रापबाक्स में डाटा फंसे होने का मतलब यह नहीं है कि बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं, बल्कि सिर्फ उनका परमानेंट एजुकेशन नंबर (पेन) नए स्कूल में ट्रांसफर नहीं हो पाया है। एक स्कूल से दूसरे स्कूल में जाने वाले बच्चों का डाटा स्थानांतरित करने की जिम्मेदारी प्रधानाध्यापक की है। अगर किसी बच्चे ने पांचवीं पास करने के बाद निचली कक्षा में प्रवेश ले लिया है, तो संबंधित स्कूल के प्रधानाध्यापक फार्म भरकर इसे ठीक कर सकते हैं। सभी जिलों के बेसिक शिक्षा अधिकारियों को 31 अक्टूबर तक समीक्षा कर गलत प्रविष्टियों को सुधारने के निर्देश दिए गए हैं।

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