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अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई (शिक्षा का अधिकार कानून) के दायरे से बाहर रखना और वहां के शिक्षकों को टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) से छूट देना बच्चों के योग्य शिक्षकों से शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है। ये बात अल्पसंख्यक स्कूलों के शिक्षकों को टीईटी की अनिवार्य योग्यता से बाहर रखने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक हस्तक्षेप अर्जी में क्ही गई है। अर्जीकर्ता खेम सिंह भाटी ने इस मामले में पक्ष रखने की इजाजत मांगते हुए कहा कि टीईटी शिक्षा के अधिकार का अहम हिस्सा है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि बच्चों को योग्य शिक्षक पढ़ाएं और उन्हें अच्छी शिक्षा प्राप्त हो। इसीलिए अल्पसंख्यक स्कूलों को टीईटी की अनिवार्यता से छूट देना बच्चों के साथ अन्याय है।सुप्रीम कोर्ट ने कक्षा एक से आठ तक पढ़ाने वाले शिक्षकों के लिए टीईटी अनिवार्य करने के गत एक सितंबर के फैसले में अल्पसंख्यक स्कूलों को फिलहाल इससे छूट देते हुए उनका मामला विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजदिया था। दो न्यायाधीशों की पीठ ने अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई के दायरे से बाहर बताने वाले पांच न्यायाधीशों के प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट मामले में पूर्व में दिए फैसले पर सवाल उठाते हुए मामला बड़ी पीठ को भेजा था। तमिलनाडु सहित कई राज्यों के मामले लंबित हैं। इसमें प्रधान न्यायाधीश को सुनवाई के लिए उचित पीठ गठित करनी है। इसी मामले में भाटी ने हस्तक्षेप अर्जी दाखिल की है। अर्जी में कहा गया है कि अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई के दायरे से बाहर रखने के प्रमति जजमेंट में कानून की सही व्यवस्था नहीं दी गई है। प्रमति जजमेंट में अल्पसंख्यक स्कूलों को इसके दायरे से बाहर करने से ये उद्देश्य कमजोर होता है, क्योंकि इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का योग्य शिक्षकों से शिक्षा पाने का अधिकार बाधित होता है।

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